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In An additional depiction of hers, she is revealed like a sixteen-calendar year-old young and sweet Female decorated with jewels by using a dazzling shimmer and a crescent moon adorned above her head. She's sitting down around the corpses of Shiva, Vishnu, and Brahma.

नवयौवनशोभाढ्यां वन्दे त्रिपुरसुन्दरीम् ॥९॥

पञ्चबाणधनुर्बाणपाशाङ्कुशधरां शुभाम् ।

Darshans and Jagratas are pivotal in fostering a sense of Neighborhood and spiritual solidarity amid devotees. Through these events, the collective Strength and devotion are palpable, as contributors engage in numerous types of worship and celebration.

॥ इति श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरीवेदसारस्तवः सम्पूर्णः ॥

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥२॥

षोडशी महाविद्या प्रत्येक प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं। मुख्यतः सुंदरता तथा यौवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होने के परिणामस्वरूप मोहित कार्य और यौवन स्थाई रखने हेतु इनकी साधना अति उत्तम मानी जाती हैं। त्रिपुर सुंदरी महाविद्या संपत्ति, समृद्धि दात्री, “श्री शक्ति” के नाम से भी जानी जाती है। इन्हीं देवी की आराधना कर कमला नाम से विख्यात दसवीं महाविद्या धन, सुख तथा समृद्धि की देवी महालक्ष्मी है। षोडशी देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध अलौकिक शक्तियों से हैं जोकि समस्त प्रकार की दिव्य, अलौकिक तंत्र तथा मंत्र शक्तियों की देवी अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। तंत्रो में उल्लेखित मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्तम्भन इत्यादि जादुई शक्ति षोडशी देवी की कृपा के बिना पूर्ण नहीं होती हैं।- षोडशी महाविद्या

She may be the possessor of all excellent and great items, which includes physical goods, for she teaches us to possess with no being possessed. It is alleged that dazzling jewels lie at her ft which fell from the crowns of Brahma and Vishnu whenever they bow in reverence to her.

While in the pursuit of spiritual enlightenment, the journey begins With all the awakening of spiritual consciousness. This Original awakening is critical for aspirants who will be on read more the onset in their route, guiding them to recognize the divine consciousness that permeates all beings.

कर्तुं मूकमनर्गल-स्रवदित-द्राक्षादि-वाग्-वैभवं

प्रणमामि महादेवीं मातृकां परमेश्वरीम् ।

केयं कस्मात्क्व केनेति सरूपारूपभावनाम् ॥९॥

देवीं कुलकलोल्लोलप्रोल्लसन्तीं शिवां पराम् ॥१०॥

मन्त्रिण्या मेचकाङ्ग्या कुचभरनतया कोलमुख्या च सार्धं

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